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Book Summary
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लोक-चेतना, लोक निबन्धकार, लोक का आधार, लोक का जाग्रत स्पन्दन, लोक का प्राण, लोक-साधक तत्व, लोक-चेतना की व्याप्ति, लोक-चेतना की अनुभूति, लोक-अभिव्यक्ति, लोक दिशाबोध व लोक-तन्त्र एवं लोक-मन्त्र आदि की दृष्टि से डा. विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, डा. विवेकी राय, डा. निर्मल वर्मा, रामनारायण उपाध्याय, डा. ब्रह्मदत्त अवस्थी, डा. गणेशदत्त सारस्वत, डा. दयाकृष्ण विजयवर्गीय, डा. श्याम नारायण पाण्डेय, डा. सुरेन्द्र वर्मा, डा. भगवानशरण भारद्वाज जैसे प्रख्यात ललित निबन्धकारों का चेतना-स्पन्द गम्भीर चिन्तन-मनन सहज सरल शब्दों में आप जैसे सहृदय-मनीषी के सम्मुख प्रस्तुत है। दृष्टव्य कभी-कभी मन में विचार आता है कि मैं इस पुस्तक को क्यों पढूँ? यह मेरे किस काम की? पर लोक का एक सम्वेदनशील अंग होने के कारण इस अद्भुत विराट कृति को पढ़ने के बाद जो कुछ अन्दर घटित होने लगता है वह सहस्त्रों सूर्यों की अलौकिक शक्ति जाग्रत कर हजारों प्रतिध्वनियाँ आकाश में गुंजाता है कि - मैं इसे नहीं पढ़ता तो कौन?
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